शहीद भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर, 1907 को हुआ। उस समय उनके चाचा अजीत सह को लाला लाजपतराय के साथ किसान-आन्दोलन का प्रतिनिधित्व करने पर अंग्रेज़ सरकार ने माण्डले ;बर्माद्ध में निर्वासित कर रखा था। जनता के रोष के आगे झुकते हुए नवम्बर, 1907 में उन्हें रिहा किया गया। पिता किशन ¯सह को अंग्रेज़ सरकार ने नेपाल से पकड़ा था और छोड़ दिया था। सबसे छोटे चाचा स्वर्ण ¯सह पर कई मुव़फदमे बनाये गये थे, और वे जमानत पर रिहा हुए थे। इसीलिए दादी ने भगत¯सह को ‘भागाँवाला’ ;भाग्यशालीद्ध मान लिया था। बाबा अर्जुन ¯सिंह ने अपने पोते का पालन-पोषण अपनी देखरेख में किया। वे शुरू से ही उसके भीतर सामाजिक चेतना और तर्क-शक्ति के विकास के लिए
प्रयत्नशील थे, और उसे सामाजिक बराबरी और प्रगति के विचारों से परिचित करा रहे थे। भगत¯सह की पहले चार साल की पढ़ाई अपने गाँव बंगा चक्क न. 105 गुगैरा ब्रांच ;अब लायलपुर, पाकिस्तानद्ध में हुई और आगे पढ़ने के लिए वे पिताजी के पास लाहौर आ गये। यह भगत¯सह का पहला ख़त है, जब वे छठी कक्षा में पढ़ रहे थे। उनका यह पत्रा दादा अर्जुन ¯सह को सम्बोधित है, जो उन दिनों गाँव खटकड़ कलाँ आये हुए थे। पत
दादा जी के नाम एक और पत्रा
लाहौर, 22 जुलाई, 1918
पूज्य बाबाजी,
नमस्ते।
अर्ज़ यह है कि आपका ख़त मिला। पढ़कर दिल ख़ुश हुआ। इम्तिहान की बाबत यह है कि मैंने पहले इस वास्ते नहीं लिखा था क्योंकि हमें बताया नहीं गया था। अब हमें अंग्रेज़ी और संस्कृत का नतीजा बताया गया है। उनमें मैं पास हूँ। संस्कृत में मेरे 150 नम्बरों में 110 नम्बर हैं। अंग्रेज़ी में 150 में से 68 नम्बर हैं। जो 150 में से 50 नम्बर ले जाये वह पास होता है। 68 नम्बरों को लेकर मैं अच्छी तरह पास हो गया हूँ। किसी वि़फस्म की चिन्ता न करना। बाव़फी नहीं बताया गया। छुट्टियाँ, 8 अगस्त को पहली छुट्टी होगी। आप कब आयेंगे, लिखना।
आपका ताबेदार
भगत सिंह
दादा जी के नाम एक और पत्रा
लाहौर, 27 जुलाई, 1919
श्रीमान पूज्य दादा जी, नमस्ते!
अर्ज़ है कि ख़ैरियत है और आपकी ख़ैरियत श्रीनारायण जी से नेक मनाया करता हूँ। अहवाल ये है कि हमारा छमाही इम्तिहान हो गये, जो जुलाई से शुरू हुए थे। हिसाब के परचे में बहुत लड़के पफेल हो गये थे, इसलिए हमारा हिसाब का इम्तिहान नौ अगस्त को दोबारा होगा। और सब तरह से ख़ैरियत है। आपने कब आना है। भाइया जी को यह बताइये कि मैं छमाही इम्तिहान में सारे मजमूनों में पास हो गया हूँ। माताजी, चाचीजी को नमस्ते। कुलतार ¯सह को 24 जुलाई की रात और 25 जुलाई की शाम को बुखार था। अभी उसे आराम है, किसी वि़फस्म की पि़फक्र
न करें।
आपका ताबेदार…
भगत¯सिंह
भगत¯सिंह ने 12 साल की उम्र में दादा अर्जुन ¯सह के नाम उर्दू में यह पत्रा लिखा
था।
दादा जी के नाम एक और पत्रा
लाहौर, 14 नवम्बर, 1921
मेरे पूज्य दादा साहब जी,
नमस्ते।
अर्ज़ यह है कि इस जगह ख़ैरियत है और आपकी ख़ैरियत श्री परमात्मा जी
से नेक मतलूब हँू। अहवाल ये है कि मुद्दत से आपका कृपा-पत्रा नहीं मिला। क्या
सबब है? कुलबीर ¯सह, कुलतार ¯सह की ख़ैरियत से जल्दी मुत्तला प़फरमायें। बेबे
साहबा अभी मोराँवाली से वापस नहीं आयीं। बाव़फी सब ख़ैरियत है।
;कार्ड की दूसरी तरप़फद्ध
माता जी को नमस्ते। चाची साहबा को नमस्ते। मंगू चमार अभी तक तो नहीं
आया। मैंने एक पुरानी किताब मोल ली थी, जोकि बहुत सस्ती मिल गयी थी।
;कार्ड की लाइनों के बीच उल्टे रुख़द्ध
आजकल रेलवे वाले हड़ताल की तैयारी कर रहे हैं। उम्मीद है कि अगले हफ्ऱते
के बाद जल्द शुरू हो जायेगी।
आपका ताबेदार
भगत¯सिंह
इस पत्रा से पता चलता है कि उस समय चल रहे असहयोग आन्दोलन के प्रभाव
से भगत¯सिंह अनजाने नहीं थे। वे दादा को बताये बिना न रह सके कि जल्दी आरम्भ
होने वाली रेल-हड़ताल की उन्हें ख़बर है।