1857 का विद्रोह

1857 का विद्रोह

1857 के विद्रोह ने भारतीय राष्ट्रवाद के बीज बोए, जो भारतीय लोगों के अवचेतन में सोई हुई अवस्था में थे। 1857 के विद्रोह ने एक युग का अंत किया और एक नए बीज का बीजारोपण किया। वर्ष 1857 भारतीय इतिहास के दो कालखंडों के बीच एक महान विभाजन है। जिसमे एक में तो ब्रिटिश साम्राज्य सर्वोपरि था, और दूसरा उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में भारतीय राष्ट्रवाद की वृद्धि का था।

विद्रोह की प्रकृति :

  • सर जॉन लॉरेंस की राय थी कि विद्रोह विशुद्ध रूप से एक सैन्य विद्रोह था, न कि ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने की साजिश।
  • वीर सावरकर ने इसे प्रथम भारतीय स्वाधीनता संग्राम के रूप में वर्णित किया है।

विद्रोह के कारण :  राजनीतिक कारण :

  • ब्रिटिश विरोधी भावनाएं विशेष रूप से बर्मा, असम, कूर्ग, सिंध और पंजाब के उन क्षेत्रों में प्रबल थीं, जहाँ ब्रिटिश साम्राज्य का व्यवहार अत्यधिक अन्यायपूर्ण था।
  • व्यपगत का सिद्धांत एक साम्राज्यवाद समर्थक उपागम था जिसका उद्देश्य भारत में ब्रिटिश राज्यक्षेत्र का विस्तार करना था। इस सिद्धांत का प्रारंभ लॉर्ड डलहौजी द्वारा किया गया था। इस सिद्धांत के अनुसार वे राज्य, जिनका कोई उत्तराधिकारी नहीं था, अपने शासन करने के अधिकार खो देते थे। साथ ही उत्तराधिकारी को गोद लेने पर भी उनके
    राज्य वापस प्राप्त नहीं किया जा सकता था।

आर्थिक कारण :

  • ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतीयों की कीमत पर ब्रिटिश व्यापार और वाणिज्य के विकास को वित्त पोषित किया।
  • अंग्रेजों ने भारतीय वस्तुओं के खिलाफ ब्रिटेन में उच्च कर लगाकर भारतीय व्यापार और निर्माण को नुकसान पहुंचाया।
  • इसने भारत में ब्रिटिश वस्तुओं के आयात के सभी साधनों को प्रोत्साहित किया।
  • वर्ष 1833 में शुरू की गई एक नई वृक्षारोपण प्रणाली के परिणामस्वरूप भारतीय किसानों को बहुत नुक्सान हुआ।

सामाजिक कारण :

  • अंग्रेजों द्वारा भारतीयों पर अंधाधुंध हमले काफी सामान्य हो गए।
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