भारत का भौतिक विभाजन

हिमालय पर्वत

हिमालय की महान पर्वत श्रृंखलाओं से समृद्ध यह क्षेत्र देश के उत्तरी सीमावर्ती, पाकिस्तान की पूर्वी सीमा से लेकर म्यांमार की सीमाओं तक फैला हुआ है।

वृहद् हिमालय या हिमाद्री :

हिमाद्री की औसत ऊँचाई 1600 फीट (4900मी.) है। यह हिमालय के तीनो भाग में सबसे ऊँचा हैद्य माउंट एवरेस्ट इसी भाग में स्थित हैद्य माउंट एवरेस्ट, चाईना-नेपाल सीमा (ऊँचाई 8850 मी. या 29035 फीट , कंचनजंघा, सिक्किम (ऊँचाई 8586 मी. या 28169 फीट), नंदा देवी (ऊँचाई 7817 मी. या 25646 फीट), कामेत (ऊँचाई 7755 मी. 25446 फीट), त्रिशूल (ऊँचाई 7120 मी. 23359 फीट) यह तीनो उत्तरांचल में स्थित हैंद्य ग्रेट हिमालय ज्यादातर बर्फ से ढँका होता है, हिमालय के ज्यादातर ग्लेशियर इसी भाग में पाए जाते हैं।

हिमालय की पर्वत चोटियों :

1. माउंट एवरेस्ट – 8850 मीटर
2. माउंट ज्ञ2- 8611 मीटर
3. कंचनजंगा – 8586 मीटर
4. मकालू – 8481 मीटर
5. धौलागिरि – 8172 मीटर
6. मंसालू – 8156 मीटर
7. चोओयु – 8153 मीटर
8. अन्नपूर्णा – 8078 मीटर

निम्न हिमालय या हिमाचल हिमालय :

वृहद हिमालय श्रेणी के दक्षिण में स्थित हिमालयी पर्वत श्रेणी को ‘मध्य हिमालय’, ‘हिमाचल’ या ‘लघु हिमालय’ कहा जाता है। इसकी औसत ऊँचाई 4000-4500 मी. है। डलहौजी, शिमला, धर्मशाला, मसूरी जैसे पर्वतीय पर्यटक स्थल इसी श्रेणी में स्थित हैं। इनकी ढालों पर वन व घास के मैदान पाये जाते हैं। इसकी औसत चौड़ाई लगभग 80 किमी. है। इसकी औसत ऊँचाई 3600 से 4600 मी. तक है तथा इसकी चौड़ाई 60 से 80 किमी. तक है। टूरिस्ट सेंटर- शिमला, मंसूरी, नैनीताल इसी रेंज में स्थित है।

शिवालिक :

लघु हिमालय के दक्षिण में हिमालय की सबसे दक्षिणी श्रेणी को ‘शिवालिक’ कहा जाता हैद्य यह हिमालय की सबसे निचली पर्वत श्रेणी है, जिसकी औसत ऊँचाई 1200-1500 मी. के बीच है। इस श्रेणी का निर्माण अवसादी चट्टानों, असंगठित पत्थरों व सिल्ट से हुआ हैद्ययह पश्चिम से पूर्व तक लगातार विस्तृत न होकर पूर्व में अन्य श्रेणियों से मिल जाती हैद्य इसकी चौड़ाई 10-50 किमी. के बीच पायी जाती हैद्य इस श्रेणी में पायी जाने वाली कुछ संकरी घाटियों को ‘दून’ कहा जाता है, जैसे-देहारादून इसी तरह की एक घाटी में स्थित शहर हैद्य

ट्रांस हिमालय :

ट्रांस हिमालय पर्वतीय भाग हिमालय के उत्तर में स्थित है, जिसमें काराकोरम, लद्दाख और जास्कर पर्वत श्रेणियाँ शामिल हैं। इस पर्वतीय क्षेत्र की चौड़ाई 150 किमी. से 400 किमी. के बीच पायी जाती हैद्य विश्व की दूसरी सबसे ऊँची चोटी, ज्ञ-2 (गॉडविन आस्टिन) सहित कुछ अन्य सबसे ऊँची पर्वत चोटियाँ पायी जाती हैं। काराकोरम में बाल्टोरो और सियाचिन जैसे वृहद ग्लेशियर पाये जाते हैं।.

‘पूर्वान्चल की पहाड़ियाँ’ :

म्यांमार की सीमा के सहारे विस्तृत हिमालय के पूर्वी विस्तार को ‘पूर्वान्चल की पहाड़ियाँ’ कहा जाता है। पूर्वान्चल में पटकई बूम, गारो-खासी-जयंतिया, लुशाई हिल्स, नागा हिल्स और मिजो हिल्स जैसी हिल्स शामिल हैं।

  • यह दक्षिण की ओर नागा पहाड़ियों में विलीन हो जाती है जहां सरमाटी सबसे ऊंची चोटी है।
  • इसके पश्चिम में कोहिमा की पहाड़ियाँ हैं जिनकी सबसे ऊँची चोटी जापवो है।
  • नगा पहाड़ियों के दक्षिण मणिपुर और म्यांमार के बीच की सीमाएं हैं।
  • बरेल रेंज नागा पहाड़ियों को मणिपुर पहाड़ियों से अलग करती है।
  • मणिपुर पहाड़ियों के दक्षिण में मिजो पहाड़ियाँ हैं जिनका उच्चतम बिंदु ब्लू माउंटेन है।
  • दफा-बम मिशमी पहाड़ियों की सबसे ऊंची चोटी है।
  • मिजो पहाड़ियाँ उत्तर-पूर्वी सीमा का सबसे दक्षिणी भाग हैं।

हिमालय के क्षेत्रीय / स्थानीय प्रभाग :

  1. पंजाब हिमालयः हिमालय का यह 560 किलोमीटर लंबा हिस्सा सिंधु और सतलुज नदियों के बीच स्थित है काराकोरम, लद्दाख, पीर-पंजाल, जस्कर और धौलाधार इस खंड की मुख्य श्रेणियाँ हैं जबकि जोजिला प्रमुख दर्रा है।
  2. कुमायूँ हिमालयः यह सतलज और काली नदियों के बीच स्थित है। सामान्य ऊंचाई पंजाब हिमालय से अधिक है। नंदा देवी, कामेत, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री सभी महत्वपूर्ण चोटियाँ हैं। नैनीताल और भीमताल महत्वपूर्ण झीलें क्षेत्र हैं।
  3. नेपाल हिमालयः हिमालय का यह खंड काली और तिस्ता नदी के बीच स्थित है। माउंट एवरेस्ट, कंचनजंगा, मकालू, धौलागिरि, आदि, इनथिस क्षेत्र में स्थित हैं।
  4. असम हिमालयः हिमालय की सीमाएं तिस्ता नदी से लेकर ब्रह्मपुत्र नदियों तक असम हिमालय में शामिल हैं।
    इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण चोटियाँ नमचा-बावा, कुला-कांगड़ी आदि हैं।

हिमालय में स्थित दर्रे :

  1. थगला और नितिला– उत्तराखंड
  2. जोजिला– यह जम्मू-कश्मीर में ट्रांस-हिमालय की जस्कर श्रेणी में स्थित है। यह श्री नगर और लेह को जोड़ता है
  3. बुर्जिल– यह J – K में वृहत हिमालय में स्थित है। यह POK और कश्मीर घाटी को जोड़ता है।
  4. बरालाचला– अधिक से अधिक हिमालय में स्थित है और हिमाचल प्रदेश और कश्मीर को जोड़ता है।
  5. रोहतांग दर्रा– मनाली और लेह को सड़क मार्ग से जोड़ता है। रावी और ब्यास नदियाँ इसके बीच से बहतीं हैं।
  6. शीपकिला– भारत और चीन को व्यापार मार्ग से जोड़ता है।
  7. लिपुलेख– उत्तराखंड में स्थित है, जो भारत-तिब्बत को जोड़ता
  8. सिक्किम में जेलेपला- अधिक से अधिक हिमालय में स्थित है।

हिमालय की उत्पत्ति और विकास :

कोबर जर्मनी के भूगर्भशास्त्री थे। कोबर ने बताया था कि आज जहां हिमालय है वहां पर टेथिस सागर टेथिस भूसन्नति था। तथा टेथिस भूसन्नति के दक्षिण में गोंडवाना लैंड था तथा टेथिस भूसन्नति के उत्तर में स्थित भू भाग को अंगारालैंड कहा जाता था कोबर के अनुसार दोनों भूखंडों में नदियां बहती थी। कोबर के अनुसार गोंडवानालैंड तथा अंगारालैंड में बहने वाली नदियों ने लंबे समय तक टेथिस सागर में अवसादों का निक्षेपण किया जिससे तिथिस भूसन्नति में मलवा जमा होने लगा। अतः लंबे समय तक मलवा जमा होने के कारण नीचे का मलवा अत्यधिक दबाव के कारण चट्टान का रूप धारण कर लिया जैसे जैसे मलवा बढ़ते गया अत्यधिक दाब के कारण टेथिस भूसन्नति और नीचे की ओर अवतलित होने लगा तथा टेथिस भूसन्नति का आयतन बढ़ गया तथा अधिक अवसादों को भरने का जगह मिल गया। कोबर के अनुसार एक समय ऐसा आया है जब अवतलन होने से टेथिस भूसन्नति में सिकुड़न होने लगा अर्थात उसकी चौड़ाई घटने लगी तथा दोनों तरफ से दबाव के कारण (अंगारालैंड तथा गोंडवाना लैंड) उसमे जमा अवसादों में वलन होने लगा तथा कोबर के अनुसार मोड़ पड़ने की क्रिया अधिक दोनों किनारों पर ही हुई तथा बीच का भाग समतल रूप में ही ऊपर की तरफ उठ गया जिसके तहत हिमालय, तिब्बत का पठार एवं कुनलुन श्रेणी का निर्माण हुआ।

उत्तरी मैदान

वृहत मैदान :

भारत का विशाल मैदान विश्व का सबसे अधिक उपजाऊ और घनी आबादी वाला भू-भाग कहलाता है। यह मैदान प्रायद्वीपीय भारत को बाह्य-प्रायद्वीपीय भारत से बिल्कुल अलग करता है, इस विशाल मैदान का क्षेत्रफल 7 लाख वर्ग किलोमीटर है। पूरब से पश्चिम दिशा में इसकी लंबाई लगभग 2,400 किलोमीटर है। चौड़ाई में यह पश्चिम से पूरब की ओर कम होती जाती है। इसकी चौड़ाई पश्चिम में 500 किलोमीटर है तथा पूरब में क्रमशः कम होती हुई घटकर 145 किलोमीटर रह जाती है। सामान्य तौर पर इस मैदान का ढाल एकदम समतल है। इसका अधिकांश भाग समुद्र तल से लगभग 150 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस मैदान का राजनीतिक विस्तार दिल्ली, उत्तरी राजस्थान, हरियाणााा, पंजाब, उत्तरी विहार, उत्तर-प्रदेश, असम, बंगाल राज्यों में है। इसकी पश्चिमी सीमा राजस्थान मरुभूमि में विलीन हो गयी है। विशाल मैदान का वर्गीकरण- इस मैदान का वर्गीकरण करना अत्यंत दुष्कर कार्य है। मिट्टी की विशेषता और ढाल के आधार पर इसका वर्गीकरण इस प्रकार किया जा सकता है-  1. भाभर  2. तराई  3. बांगर  4. खादर  5. रेह   6. भूड   7. डेल्टाई मिट्टी क्षेत्र

भाभर प्रदेशः विशाल मैदान की उत्तरी सीमा पर महीन मलबे और मोटे ककड़ों के मिश्रण से बने मैदान हैं। इन्हें भाभर प्रदेश कहा जाता है। भाभर प्रदेश गंगा मैदान की उत्तरी सीमा बनाता है। यह हिमालय के पथरीले ढाल हैं जो एक छोर से दूसरे छोर तक 10 किलोमीटर से लेकर 15 किलोमीटर की चौड़ाई तक फैले हैं।

तराई प्रदेशः इस प्रदेश का निर्माण बारीक ककड़, पत्थर, रेत तथा चिकनी मिट्टी से हुआ है। यह भाभर प्रदेश के दक्षिण का दलदली क्षेत्र है। जहां भाभर प्रदेश में धरातल के नीचे से जल प्रवाहित होता है वहीं तराई क्षेत्र में यह पुनः धीरे-धीरे धरातल पर प्रवाहित होता है। तराई प्रदेश में ढाल की कमी के कारण पानी यत्र-तत्र बहता रहता है जिससे इस क्षेत्र की भूमि सदैव नम रहती है।

खादर प्रदेशः जिस भू-भाग में नदियों की बाढ़ का पानी प्रत्येक वर्ष पहुंचता है, उसे खादर प्रदेश कहते हैं। इसे नदियों के बाढ़ का मैदान या कछारी प्रदेश भी कहते हैं। बिहार, उत्तर प्रदेश व राजस्थान में खादर भूमि की प्रधानता पायी जाती है। इस प्रदेश का निर्माण काल उप-प्लीस्टोसीन से प्रारंभ होता है तथा यह प्रक्रिया वर्तमान में भी जारी है। बालू एवं कंकड़ उपलब्ध होने के कारण यह भूमिगत जल का उत्तम संग्राहक है।

बांगर प्रदेशः यह उच्च भू-भाग है जहां नदियों का पानी नहीं पहुंच पाता है। इस क्षेत्र में चूना युक्त कंकड़ीली मिट्टी पाई जाती है। इस क्षेत्र की ऊंचाई एक समान नहीं होती तथा कहीं पर यह 25-30 मीटर की ऊंचाई पर भी पाये जाते हैं। बांगर भूमि प्रायः पंजाब व उत्तर प्रदेश में पायी जाती है।

रेहः बांगर प्रदेश के सिंचाई कार्यों की अधिकता वाले क्षेत्रों में कहीं-कहीं भूमि पर एक नमकीन सफेद परत बिछी हुई पाई जाती है, इसी परत वाली मिट्टी को रेह या कल्लर के नाम से जाना जाता है। रेह का विस्तार शुष्क भागों में सबसे ज्यादा है। उत्तर प्रदेश और हरियाणा का शुष्क भाग इसके विशिष्ट उदाहरण हैं

भूड़ः बांगर भूमि पर पाये जाने वाले बालू के ढेर भूड़ कहलाते हैं। इसका जमाव प्रायः गंगा और रामगंगा नदियों के प्रवाह क्षेत्र में अधिक होता है।

डेल्टाई प्रदेशः गंगा व ब्रह्मपुत्र नदियां विशाल डेल्टा का निर्माण करती हैं। इनका डेल्टा भारत व बांग्लादेश में फैला हुआ है। उल्लेखनीय है कि डेल्टाई प्रदेश खादर प्रदेश का विस्तार मात्र है। परंतु इसकी दक्षिणी सीमा को सोन व चम्बल नदियों के बीच की नदियों द्वारा बुरी तरह से काट-छांट दिया गया है, इसलिए प्रायः इसे बुरा स्थल भी कहा जाता है।

उत्तरी मैदान का धरातलीय वर्गीकरण- भारत के उत्तरी मैदान को धरातलीय विशेषताओं के आधार पर निम्नानुसार विभाजित किया जा सकता हैः

सिंधु मैदानः यह मैदान सिंधु नदी के पश्चिम में विस्तृत है। यह मुख्यतः बांगर से बना है। इस मैदान का उत्तरी भाग चीका
मरुस्थल है, जबकि दक्षिणी भाग में रेत और दोमट मिट्टी पायी जाती है। पूर्वी भाग डेल्टाई प्रकार का है, जो कच्छ के रन की दलदली मिट्टी में विलय होता जा रहा है। इस भाग में नवीन जलोढ़ निक्षेपों की सतह पर पूर्व नदी प्रवाहों के अवशेष (लंबे एवं संकरे गतों के रूप में) पाये जाते हैं, जो धोरो कहलाते हैं। धांध सूखे प्रवाहों के निकट पायी जाने वाली क्षारीय झीलें होती हैं, जैसे-पूर्वी नारा।

पंजाब का मैदानः इस मैदान का सबसे विशिष्ट लक्षण पंज-दोआब हैं। लंबे समय से कार्य कर रही निक्षेपात्मक शक्तियों ने इन दोआबों को एक समरूप भू-आकृतिक स्थल बना दिया है। आयों के प्रथम प्रवास के समय से इन दोआबों की पहचान कायम है। बेट पंजाब मैदान के खादर क्षेत्र हैं जो बाढ़ प्रभावित होने के बावजूद कृषि के लिए अत्यंत उपयोगी हैं। ढैय्या 3 मीटर या अधिक ऊंचाई वाले अवनालिकायुक्त वप्र हैं, जो खादर मैदानों के पार्श्वों पर पाये जाते हैं। ये जलोढ़ लक्षण पाकिस्तानी पंजाब से भारतीय पंजाब तक उल्लेखनीय नियमितता दर्शाते हैं।

गंगा के मैदानः ये मैदान तीन विशिष्ट सांस्कृतिक-भौगोलिक विभागों में बांटे जा सकते हैं- गंगा-यमुना दोआब, अवध का मैदान तथा मिथिला का मैदान। यमुना एवं चंबल के प्रवाह मागों से जुड़े बांगर उच्च भूभाग खड्डों एवं अवनालिकाओं में खंडित हो चुके हैं। इस कारण इस क्षेत्र में खड्डों, अवनालिकाओं या उत्खात भूमि का एक जटिल चक्रव्यूह निर्मित हो गया है, जिसे सामान्यतः बीहड़ कहा जाता है। भाबर व तराई मैदान तथा भूड़ निक्षेप इस भाग के अन्य प्रमुख भूलक्षण हैं। खोल पुरानी बांगर उच्च भूमि के बीच स्थित मध्यवर्ती ढाल हैं।

बंगाल डेल्टाः इसमें प्राचीन एवं नवीन पंक तथा दलदली भूमि पायी जाती है। यह डेल्टा वास्तव में एक अपरदी मैदान है जो निक्षेपित क्षेत्र के रूप में पहचाना जाता है।

उत्तर में यह गंगा- ब्रह्मपुत्र का दोआब निर्मित करता है तथा पश्चिम में हुगली एवं प्रायद्वीपीय खंड के मध्य एवं समप्राय मैदान बनाता है। पूर्व की ओर यह सूरमा घाटी एवं मेघना के मैदान में विलीन हो जाता है।

असम का मैदानः यह मैदान धुबरी से सादिया तक 640 किमीलंबाई तथा 100 किमी. की चौड़ाई में विस्तृत है। यह मैदान मुख्यतः ब्रह्मपुत्र एवं उसकी सहायक नदियों की अपरदी वेदिकाओं के रूप में निर्मित हुआ है।

पश्चिमी मैदानः ये मैदान मुख्यतः राजस्थान के मरुस्थल तथा कच्छ के रण में फैले हुए हैं। यहां पानी की अपेक्षा वायुगत
क्रियाएं अधिक प्रभावशाली होती हैं। यह क्षेत्र पूर्व-कार्बोनीफेरस युग से प्लीस्टोसीन युग तक समुद्र के नीचे था। इस क्षेत्र के प्रमुख भौगोलिक लक्षणों में धरियां (सचल बालुका टिब्बे), रन (प्लाया झीलें) तथा रोही (अरावली के पश्चिम में स्थित उपजाऊ मैदान) शामिल हैं। इस क्षेत्र में सांभर, डीडवाना, कुचामान, देगाना, पचपद्र तथा लूँकरसर तल जैसी नामक की झीलें पाई जाती हैं।

प्रायद्वीपीय पठार

दक्षिण भारत के प्रायद्वीपीय पठारी प्रदेश का क्षेत्रफल करीब 9 लाख वर्ग कि.मी. है। इसकी औसत ऊँचाई 500-750 मी. के मध्य है। यह विश्व का सबसे बड़ा प्रायद्वीपीय पठार है। यह विश्व के प्राचीनतम पठारों में से भी एक है। इस पठार की स्थलाकृति पर सभी महत्वपूर्ण भूसंचलन का प्रभाव पड़ा है। इस पठारी प्रदेश के पर्वतीय और पहाड़ी श्रृंखलाओं में अरावली पर्वत (उत्तरी-पश्चिमी सीमांत क्षेत्र), विन्ध्य पर्वत (उत्तरी सीमांत), राजमहल की पहाड़ी (उत्तर-पूर्व सीमांत), गिर पहाड़ी (काठियावाड़ पठार का सीमांत), पश्चिमी घाट पर्वत, नीलगिरी, अन्नामलाई, कार्डमम तथा नागर कोल की पहाड़ियाँ (पश्चिमी प्रायद्वीपीय सीमांत) तथा पूर्वी घाट पर्वत (पूर्वी प्रायद्वीपीय सीमांत) महत्वपूर्ण पहाड़ी श्रृंखलाएँ हैं। आंतरिक भागों की श्रृंखलाओं में सतपुड़ा, महादेव, मैकाल, अजंता, पारसनाथ और पालनी पहाड़ियाँ हैं।

पर्वतीय पठार को पुनः चार प्रमुख पठारों में विभाजित किया गया है। ये हैं –
1. दक्कन का पठार
2. पूर्वी पठार
3. मध्यवर्ती पठार
4. काठियावाड़ का पठार

1. दक्कन का पठार :

दक्कन का पठार सतपुड़ा, महादेव तथा मैकाल श्रृंखला से लेकर नीलगिरी पर्वत के बीच अवस्थित है। इसकी औसत ऊँचाई 300-900 मी. के बीच है। इसे पुनः तीन पठारों में विभाजित किया गया है।
(1) महाराष्ट्र का पठार (काली मृदा),
(2) आंध्रप्रदेश का पठार, जिसे ‘आंध्रा प्लेटो’ कहते हैं। इसे 2 भागों में बाँटते हैं –
क. तेलंगाना पठार (लावा पठार)
ख. रायलसीमा पठार (आर्कियन चट्टानों की प्रधानता)
(3) कर्नाटक पठार (मैसूर पठार) – इसमें आर्कियन चट्टानों की प्रधानता है। यह धात्विक खनिजों के लिए प्रसिद्ध है।

कनार्टक पठार को 600 मीटर की ऊंचाइ र् वाली सम ुच्च रेखा दो भागों में विभाजित करती है- उत्तरी भाग और दक्षिणी भाग। उत्तरी भाग पर क ृष्णा व त ुंगभद्रा नदियां बहती हैं। यहां घाट-प्रभा व माल-प्रभा नदियां क ृष्णा नदी में उसके दाएं भाग पर मिलती हैं। कना र्टक पठार के दक्षिणी भाग को मैस ूर पठार कहते हैं। यह दक्षिण भारत का उच्च सीमा वाला पठार है। नीलगिरि पहाड़ियों द्वारा इसकी दक्षिणी सीमा का निमा र्ण होता है। पश्चिमी भाग मालवाड़ के नाम से जाना जाता है, जो एक पहाड़ी क्षेत्र है। इसकी औसत ऊंचाइ र् 1000 मीटर है। इस पहाड़ी क्षेत्र में काफी कटाव हैं। ढाल काफी तेज है और नदी घाटियां गहरी हैं। यह भाग वनों से प ूण र्रूपेण आच्छादित है। प ूरब की ओर का भाग उमि र्ल मैदानों वाला है। मैस ूर पठार की प्रम ुख नदी कावेरी है। यहां पर ग ्रेनाइट पहाड़ियां मिलती हैं, जो नीचे ध्सी ह ुइ र् होती हैं।

मालवा का पठारः यह पठार लावा द्वारा निर्मित काली मिट्टी का पठार है। इसका ढाल गंगा घाटी की ओर है। इसमें पारवती, बेतवा, माहि, चम्बल एवं कलि सिंध आदि नदियाँ प्रवाहित होते हुए यमुना में मिल जाती हैं। औसतन 250 मीटर ऊंचे इन पठारों पर कहीं-कहीं उर्मिल मैदान मिलते हैं, जिनमें चपटी पहाड़ियां भी स्थित हैं। उदाहरणस्वरूप उत्तर में ग्वालियर की पहाड़ियां प्रमुख हैं। इस पठार की उत्तरी व उत्तर-पूर्वी सीमा पर बुंदेलखण्ड व बाघेलखण्ड के पठार स्थित हैं, परंतु पठार के उत्तर भांग को चंबल और उसकी सहायक नदियों ने बीहड़ खडु में परिवर्तित कर दिया है।

छोटानागप ुर का पठार- यह पठार बिहार व झारखंड के गया, हजारीबाग और रांची आदि क्षेत्रों में फैला ह ुआ है इसकी औसत ऊंचाइ र् 700 मीटर है। महानदी, स्वण र् रेखा, सोन और दामोदर आदि इस पठार की म ुख्य नदियां हैं, जो गहरी घाटियों में प्रवाहित होकर अलग-अलग दिशाओं में फैल जाती हैं। सोन नदी पठार के उत्तर-पश्चिम से बहकर गंगा नदी में समाहित हो जाती है। दामोदर नदी पठार के मध्य भाग में पश्चिम से प ूव र् की ओर प्रवाहित होती है। महानदी इसकी दक्षिणी सीमा है, जो दक्षिण-प ूव र् में प्रवाहित होती है। इस पठार की उत्तरी सीमा राजमहल पहाड़ियां हैं छोटानागप ुर का पठार कइ र्भागों में बंटा ह ुआ है। दामोदर नदी के उत्तर में कइ र् पठार और पहाड़ियों के सम ूह मिलते हैं, जिनमें हजारीबाग तथा कोडरमा के पठार प्रम ुख हैं। दामोदर नदी के दक्षिण में रांची का पठार स्थित है। खनिज पदाथों र् की दृष्टि से इस पठार को काफी धनी माना जा सकता है। यहां पर भारत के प्रम ुख खनिज बा ॅक्साइट, अभ ्रक और कोयला आदि भारी मात्रा में पाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त टंगस्टन, क्रोमाइट, च ूना-पत्थर, चिकनी मिट्टी, क्वाट र्ज, इमारती पत्थर, तांबा आदि भी यहा ँ प्रच ुर मात्रा में उपलब्ध हैं। वन संपदा की दृष्टि से इस पठार का विशेष महत्व है।

मेघालय का पठारः इसका निर्माण गोंडवाना काल के निक्षेपों से हुआ है। मेघालय के पठार का उत्तरी ढाल लम्बवत है जहां से ब्रह्मपुत्र नदी बहती है तथा दक्षिणी ढाल धीमा है।

ब ुन्देलखंड का पठारः यह पठार ग्वालियर पठार व विंध्याचल श्रेणी के बीच में फैला ह ुआ है। इसकी ऊंचाइ र् लगभग 300-600 मीटर के मध्य है। इसे बाघेलखंड का पठार भी कहते हैं। प्राचीनतम ब ुंदेलखण्ड नीस से निमि र्त है और इस पर सोपानी वेदिकाएं भी मिलती हैं। इसके इद र्-गिद र् ग ्रेनाइट तथा बल ुआ पत्थर के टीले एवं पहाड़ियां भी
मिलती हैं। बाघेलखण्ड का पठार विंध्यन श्रेणी के कैम ूर और भारनेर पहाड़ियों के प ूव र् में स्थित है। इसके उत्तर में सोनप ुर पहाड़ियां तथा दक्षिण में रामगढ़ पहाड़ियां हैं। बाघेलखण्ड का मध्य भाग क्रमशः ऊंचा होता ह ुआ प ूरब से पश्चिम की ओर फैल गया है। यहां पश्चिमी भाग में बल ुआ पत्थर व च ूने का पत्थर तथा प ूवी र् भाग में ग ्रेनाइट की चट्टानें पाइ र् जाती हैं।

प्रायद्वीपीय पठार की पर्वत श्रेणियां :

प्रायद्वीपीय पठार की पर्वत श्रेणियों को निम्नानुसार वर्गीकृत किया जा सकता है-
विंध्याचलः विंध्याचल श्रेणी का विस्तार अव्यवस्थित रूप में है। यह नर्मदा नदी के साथ-साथ पश्चिम की ओर गुजरात से आरंभ होकर उसके समानांतर पूर्व दिशा में बढ़ती हुई उत्तर-पूर्व दिशा की ओर मुड़ जाती है तथा अंततः उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर तक अपना विस्तार प्राप्त करती है। विंध्याचल पर्वतमाला-विंध्याचल, भारनेर, कैमूर तथा पारसनाथ की पहाड़ियों का सम्मिलित रूप है। विंध्याचल पर्वत में परतदार चट्टानें (लाल व बलुआ पत्थरों से युक्त) मिलती हैं। विंध्याचल पर्वत ही उत्तरी और दक्षिण भारत को एक-दूसरे से स्पष्ट रूप से अलग करता है। इस पर्वत की औसत ऊंचाई 900 मीटर है।

सतपुड़ाः यह पर्वतमाला नर्मदा और ताप्ती नदियों के बीच पश्चिम में राजपीपला की पहाड़ियों से आरंभ होकर छोटानागपुर के पठार तक विस्तृत है। महादेव और मैकाल पहाड़ियां भी सतपुड़ा पर्वतमाला के अंतर्गत ही हैं। सतपुड़ा पर्वतमाला का भौगोलिक विस्तार 21° से 24° उत्तरी अक्षांश के बीच है और इसकी औसत ऊंचाई 760 मीटर है। 1350 मीटर ऊंची धूपगढ़ चोटी सतपुड़ा की सबसे ऊंची चोटी है। यह चोटी महादेव पहाड़ी पर स्थित है। सतपुड़ा की अमरकंटक चोटी (1,066 मीटर) से ही नर्मदा नदी का उद्गम होता है। सतपुड़ा पर्वतमाला के अंतर्गत जबलपुर के समीप धुंआधार जल-प्रपात सर्वाधिक प्रसिद्ध है। सतपुड़ा से संगमरमर की चट्टानें प्राप्त होती हैं।

अरावलीः अरावली पर्वत श्रेणी अहमदाबाद के समीप राजस्थान के मरुस्थल की पूर्वी सीमा से लेकर उत्तर-पूर्व में दिल्ली के दक्षिण-पश्चिम तक विस्तृत है। अरावली पर्वतमाला की कुल लंबाई लगभग 880 किलोमीटर है। आबू के निकट गुरुशिखर (1,772 मी.) अरावली की सबसे ऊंची चोटी है। अरावली की औसत ऊंचाई 300 से 900 मीटर के बीच है। अरावली श्रेणी जल विभाजक के रूप में कार्य करती है। इसके पश्चिम की ओर माही तथा लूनी नदियां निकलती हैं, जो अरब सागर में गिरती हैं। पूर्व की ओर मुख्य रूप से बनास नदी निकलती है, जो चंबल की सहायक नदी का कार्य करती है। ये सभी नदियां अस्थाई (मौसमी) हैं।

पशिचमी घाट या सह्याद्री :
पश्चिमी घाट, दक्कन पठार की पश्चिम सीमा से पश्चिमी तट के समानांतर विस्तृत है। यह उत्तर में ताप्ती नदी घाटी से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक 1,600 कि.मी. की लंबाई में विस्तृत है। भौगोलिक संरचना की दृष्टि से पश्चिमी घाट को तीन वर्गों में विभक्त किया जाता है- 1. उत्तरी सह्याद्री 2. मध्य सह्याद्री 3. दक्षिण सह्याद्री

उत्तरी सह्याद्रीः ताप्ती नदी से शुरू होकर मालप्रभा नदी के उद्गम स्थल तक 650 किलोमीटर की लंबाई में विस्तृत है। उत्तरी सह्याद्री की औसत ऊंचाई 550 मीटर है। यहीं से गोदावरी, भीमा, कृष्णा एवं उर्रा नदियों का उद्गम होता है। कलसुबाई (1,646 मीटर), सालहेर (1,567 मीटर) तथा महाबलेश्वर (1,438 मी.) उत्तरी सह्याद्री की प्रमुख चोटियां हैं। थालघाट (581 मीटर) और भोरघाट (680 मीटर) उत्तरी सह्याद्री के दो प्रमुख दर्रे हैं। मुम्बई से कोलकाता का मार्ग भोरघाट दर्रे से ही बनता है।

मध्य सह्याद्रीः मालप्रभा नदी के उद्गम स्थल से लेकर पालघाट दर्रे के बीच 650 किलोमीटर की लंबाई में विस्तृत है। यह भाग काफी उबड़-खाबड़ धरातल वाला है तथा वनों से आच्छादित है। मध्य सह्याद्री की औसत ऊंचाई 1,220 मीटर है। कुद्रेमुख (1,892 मीटर) और पुष्पगिरि (1,794 मीटर) यहां की प्रमुख चोटियां हैं। मध्य सह्याद्रि की चट्टानें ग्रेनाइट और नीस प्रकार की हैं। इसके पूर्व की ओर तुंगभद्रा और कावेरी नदियाँ प्रावधि होती हैं।

दक्षिण सह्याद्रीः नीलगिरि पहाड़ियों से लेकर कन्याकुमारी तक 290 किलोमीटर की लंबाई में विस्तृत है। इस भाग में नीलगिरि पहाड़ी के साथ-साथ अन्नामलाई की पहाड़ी भी हैं। अन्नाईमुड़ी (2,695 मीटर) दक्षिणी सह्याद्री की सबसे ऊंची चोटी है। दक्षिणी सह्याद्री के उत्तर-पूर्व में पालनी की पहाड़ियां हैं तथा दक्षिण में इलायची की पहाड़ियां हैं।

पूर्वी घाटः पूर्वी घाट का विस्तार 1,300 किलोमीटर की लंबाई में महानदी से लेकर नीलगिरि की पहाड़ियों तक है। पूर्वी घाट की औसत ऊंचाई 615 मीटर है। पूर्वी घाट के के अंतर्गत दक्षिण से उत्तर की ओर पहाड़ियों को निल्गीती, पल्कोंदा, अन्नामलाई, जावदा और शिवराय की पहाड़ियों के नाम से जाना जाता है। गोदावरी और कृष्णा नदियों के डेल्टा के बीच पूर्वी घाट का स्तर समान हो गया है। विशाखापट्टनम (1,680 मीटर) पूर्वी घाट का सबसे ऊंचा स्थल है और इसके बाद
महेंद्रगिरि (1,501 मीटर) सबसे ऊंची चोटी है। पूर्वी घाट का निर्माण चार्कोनाइट्स और खोंडालाइट्स चट्टानों से हुआ है। पूर्वी घाट में चंदन के वन भी मिलते हैं। कावेरी नदी द्वारा निर्मित होजेकल जल-प्रपात पूर्वी घाट में ही है। प्रायद्वीपीय भूखंड भूगर्भिक रूप से अत्यंत समृद्ध हैं तथा यहां अनेक प्रकार के धात्विक व अधात्विक खनिज पाये जाते हैं। खनिजों का सबसे बड़ा अंश छोटानागपुर पठार में पाया जाता है।

नीलगिरि (नीला, पहाड़) :

  1. यह तीन पर्वतीय प्रणालियों का नोडल बिंदु है, पश्चिमी घाट, पूर्वी घाट और दक्षिणी पहाड़ियाँ।
  2. मजबूत चार्नोसाइट्स से बना है।
  3. डोडा बेट्टा (2637 मी), मकुर्ती (2554 मी) और वंबडी शोला (2470 मीटर) तीन सबसे ऊंची चोटियां हैं। यह बेल्ट रबर, चाय और कॉफी बागान के लिए प्रसिद्ध है।
  4. ऊटाकामंड- दक्षिण भारत में सबसे लोकप्रिय हिल-स्टेशन डोडा बेट्टा के नीचे में एक विस्तृत अविरल घाटी में स्थित है।
  5. थाल घाटः यह सह्याद्रि में स्थित है, यह मुंबई को इंदौर, नासिक और भुसाल से जोड़ता है।
  6. अबोर घाटः यह एम्हर्स्ट में पश्चिमी घाट में स्थित है, मुंबई को पुणे से जोड़ता है।
  7. पाल घाटः यह नीलगिरि में स्थित है और कोचीन को कोयम्बटूर से जोड़ता है।
  8. मेलघाटः सतपुड़ा पर्वतमाला के दक्षिण में स्थित है। मेलघाट दर्रा महाराष्ट्र के अमरावती जिले में स्थित है।
  9. शेनकोटा गैपः यह इलायची पहाड़ियों में एक संकीर्ण दर्रा है और कोल्लम और मदुरई को जोड़ता है।

भारतीय रेगिस्तान

थार रेगिस्तान, जिसे ग्रेट इंडियन डेजर्ट के रूप में भी जाना जाता है, भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भाग में एक बड़ा शुष्क क्षेत्र है जो 200,000 किमी 2 (77,000 वर्ग मील) के क्षेत्र को कवर करता है और भारत और पाकिस्तान के बीच एक प्राकृतिक सीमा बनाता है। यह दुनिया का 17 वां सबसे बड़ा रेगिस्तान है, और दुनिया का 9 वां सबसे बड़ा उपोष्णकटिबंधीय रेगिस्तान है। थार रेगिस्तान उत्तर-पूर्व में अरावली पहाड़ियों, तट के साथ कच्छ के महान रण और पश्चिम और उत्तर-पश्चिम में सिंधु नदी के जलोढ़ मैदानों के बीच फैला हुआ है।

तटीय मैदान

तटीय मैदान भारतीय तट रेखा के साथ-साथ (प्रायद्वीपीय पर्वत श्रेणियों तथा समुद्र तट के मध्य) फैला हुआ क्षेत्र है, जो पूर्वी तथा पश्चिमी दोनों तटों के साथ संलग्न है।

पूर्वी तटीय मैदान :

भारत के पूर्वी तटीय मैदान का विस्तार पूर्वी घाट और पूर्वी तट के मध्य सुवर्णरेखा नदी से लेकर कन्याकुमारी तक है। पूर्वी तटीय मैदान का विस्तार पश्चिम बंगाल, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु राज्यों में है। इस मैदान में निक्षेपों की अधिकता है, क्योंकि गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, महानदी जैसी बंगाल की खाड़ी की ओर प्रवाहित होने वाली
बड़ी-बड़ी नदियां सागर में मिलने से पूर्व यहाँ अवसादों का निक्षेपण करती हैं और डेल्टा का निर्माण करती हैं। अवसादों के निक्षेपण के कारण ही यह मैदान पश्चिमी तटीय मैदान की तुलना में अधिक चौड़ा है। पूर्वी तटीय मैदान को दक्षिण-पश्चिम मानसून और उत्तर-पूर्वी मानसून दोनों मानसूनों से वर्षा प्राप्त होती है। चिकनी मिट्टी की प्रधानता के कारण इस मैदान में चावल की खेती अधिक की जाती है। पूर्वी तटीय मैदान में गोदावरी व कृष्णा नदियों के डेल्टा में कोल्लेरु झील स्थित है।
चिल्का और पुलिकट झीलें, जोकि लैगून का उदाहरण हैं, भी पूर्वी तटीय मैदान पर स्थित हैं। ओडिशा का तटीय मैदान उत्कल मैदान कहलाता है। पूर्वी तटीय मैदान को निम्न भागों में बांटा जाता है :

  • उत्तरी सरकार : गोदावरी व महानदी डेल्टा के बीच का मैदान
  • आंध्र मैदान : आंध्र प्रदेश का तटीय मैदान
  • कोरोमंडल : तमिलनाडु का तटीय मैदान
    पूर्वी तटीय मैदान पर उत्तर से दक्षिण स्थित प्रमुख डेल्टा निम्नलिखित हैंः
  • महानदी डेल्टा : ओडिशा
  • गोदावरी डेल्टा : आंध्र प्रदेश
  • कृष्णा डेल्टा : आंध्र प्रदेश
  • कावेरी डेल्टा : तमिलनाडु
  • प ूवी र् तटीय मैदान अत्यधिक अवसाद के निक्षेपण के कारण प्राक ृतिक बन्दरगाहों/पत्तनों के विकास के अधिक अन ुक ूल नहीं है, इसीलिए इस तट पर प्रायः क ृत्रिम पत्तन ही पाये जाते हैं। प ूवी र् तटीय मैदान का जनसंख्या घनत्व पश्चिमी तटीय मैदान की त ुलना में अधिक है। इस मैदान का ढाल अत्यधिक कम है, इसलिए नदियों का प्रवाह ध्ाीमा रहता है।

पश्चिमी तटीय मैदान :

भारत के पश्चिमी तटीय मैदान का विस्तार गुजरात तट से लेकर केरल के तट तक है। इस मैदान को चार भागों में विभाजित किया जाता है-
* गुजरात का तटीय मैदान – गुजरात का तटीय मैदान (इसे कच्छ और काठियावाड़/सौराष्ट्र का तटीय मैदान में बांटा जाता है।)
* कोंकण का तटीय मैदान – महाराष्ट्र व गोवा का तटीय मैदान
* कन्नड़ का तटीय मैदान – कर्नाटक का तटीय मैदान (इसे कनारा तटीय मैदान भी कहा जाता है।)
* मालाबार का तटीय मैदान – केरल का तटीय मैदान
ग ुजरात का तटीय मैदान का कच्छ का मैदान श ुष्क एवं अद्ध र्श ुष्क रेतीला मैदान है, लेकिन काठियाबाड़ तटीय मैदान (जिसे सौराष्ट ्र का तटीय मैदान भी कहा जाता है) से होकर माही, साबरमती, नम र्दा तथा ताप्ती नदिया ँ अरब सागर में गिरती हैं। कोंकण के तटीय मैदान पर साल, सागौन आदि के वनों की अधिकता है। कन्नड़ के तटीय मैदान का निमा र्ण प्राचीन रूपांतरित चट्टानों से ह ुआ है, जिस पर गरम मसालों, स ुपारी, केला, आम, नारियल, आदि की क ृषि
की जाती है। मालाबार के तटीय मैदान में कयाल (लैग ून) पाये जाते हैं, जिनका प्रयोग मछ ्ली पकड़ने, अंतदे र्शीय जल परिवहन के साथ-साथ पय र्टन स्थलों के रूप में किया जाता है। केरल की प ुन्नामदा कयाल में प्रतिवष र् नेहरू ट ्रा ॅफी नौकायन दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है।  भारत का पश्चिमी तटीय मैदान ग ुजरात में सबसे चौड़ा है और दक्षिण की ओर जाने पर इसकी चौड़ाइ र् कम होती जाती है, लेकिन केरल में यह फिर चौड़ा हो जाता है। अतः मध्य भाग में ये सबसे कम चौड़ा हैद्य इस मैदान की औसत चौड़ाइ र् 64 किमी. है। इस मैदान का ढाल पश्चिम की ओर है, जिस पर छोटी-छोटी लेकिन तीव ्रगामी नदिया ँ प्रवाहित होती है। इस मैदान से होकर बहने वाली नदिया ँ डेल्टा नहीं बनाती हैं।

द्वीप समूह

भारत के द्वीप समूह को दो भागों में बांटा जाता हैरू अरब सागर में स्थित ‘अंडमान और निकोबार द्वीप समूह’ तथा बंगाल की खाड़ी में स्थित ‘लक्षद्वीप समूह’। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह निमज्जित पर्वतीय चोटियों के उदाहरण हैं जबकि लक्षद्वीप प्रवाल निर्मित द्वीपों के उदाहरण हैं।

अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह :

बंगाल की खाड़ी या अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में लगभग
572 द्वीप स्थित हैं, जिनमें से अधिकांश 6° उण्.14° उण् अक्षांश और
92° पू. . 94° पू. देशांतर के मध्य स्थित हैं। इन द्वीपों को दो भागों
में बाँटा जाता हैः
1. उत्तर में अंडमान द्वीपसमूह
2. दक्षिण में निकोबार द्वीपसमूह
ये दोनों द्वीपसमूह 100 चैनल द्वारा एक-दूसरे से अलग होते हैंः

अंडमान द्वीपसमूह :
अंडमान द्वीपसमूह में स्थित प्रमुख द्वीपों का उत्तर से दक्षिण क्रम इस प्रकार हैः
1. उत्तरी अंडमान
2. मिडिल/मध्य अंडमान
3. दक्षिणी अंडमान
4. लिटिल अंडमान
निकोबार द्वीपसमूह में स्थित प्रमुख द्वीपों का उत्तर से दक्षिण क्रम इस
प्रकार हैः
1. कार निकोबार
2. लिटिल निकोबार
3. ग्रेट निकोबार

ऐसा माना जाता है कि इन द्वीपसमूहों का निर्माण सागर के जल में डूबी पर्वतीय चोटियों के जल के ऊपर आने से हुआ है। इनमें से कुछ छोटे द्वीपों की उत्पत्ति ज्वालामुखी क्रिया से हुई है। भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी ‘बैरन द्वीप’ निकोबार द्वीप समूह में ही स्थित है। अंडमान और निकोबार भारत का एक संघशासित/केंद्रशासित प्रदेश है, जिसकी राजधानी साउथ अंडमान में स्थित ‘पोर्ट ब्लेयर’ है, जोकि भारत के प्रमुख पत्तनों में से एक हैं। इस द्वीपसमूह में भूमध्यरेखीय या विषुवतीय प्रकार की जलवायु व वनस्पति पायी जाती है और संवहनीय वर्षा होती है। सघन सदाबहार वन, प्रकृतिक सुंदरता और जनजातीय जनसंख्या व संस्कृति यहाँ की पहचान है। वर्तमान में यह भारत के एक प्रमुख पर्यटन केंन्द्र के रूप में विकसित हो चुका है। अंडमान और निकोबार ‘कोको चैनल’ के माध्यम से म्यांमार से और ‘ग्रेट चौनल’ के माध्यम से इंडोनेशिया से अलग होता है।

लक्षद्वीप समूह :

अरब सागर में स्थित द्वीपसमूहों अर्थात लक्षद्वीप का निर्माण प्रवाल संरचना से हुआ है, जोकि 8° उ. . 12° उ. अक्षांश और 71° पू. . 74° पू. देशांतर के मधी विस्तृत हैं। इन द्वीपों की संख्या 36 है, जिनमें से केवल 11 द्वीपों पर मानवीय अधिवास पाया जाता है। ये द्वीप केरल के तट से 280-480 किमी. पूर्व में स्थित हैं। लक्षद्वीप समूह को दो
भागों में बाँटा जाता हैः
1. उत्तर में अमीनीदीवी व कन्नानोर द्वीप समूह
2. दक्षिण में मिनीकॉय द्वीप
ये दोनों द्वीपसमूह 90 चैनल द्वारा एक-दूसरे से अलग होते हैं और 80 चैनल लक्षद्वीप को मालदीव से अलग करता है। मिनीकॉय लक्षद्वीप समूह का सबसे बड़ा द्वीप है। लक्षद्वीप भारत का एक संघशासित/केंद्रशासित प्रदेश है, जिसकी राजधानी ‘कावरत्ती’ है। सुंदर पुलिनों (ठमंबीमे) और प्राकृतिक सुंदरता के कारण यह भारत के एक प्रमुख पर्यटन केंन्द्र
के रूप में विकसित हो चुका है।

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